Thursday, December 21, 2017

'माँ' जीवन की मेरे
संबल थी, आशा थी
मेरे व्यक्तित्व की 
सम्पूर्ण परिभाषा थी,
उसकी इच्छा ही थी, 
मेरे लिए संविधान
मैं  सुनता रहा, 
जग कहता रहा, 
पागल एक इंसान

डॉ जयप्रकाश तिवारी

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