Tuesday, March 16, 2010

मृत्यु चिंतन-विन्दु है

मृत्यु क्या है?
जन्म से मृतु तक का
समय है - 'जीवन यात्रा'.
परन्तु मृत्यु तक सीमित
नहीं है - यह जीवन.

मृत्यु है -
जीवन का विश्राम स्थल;
कुछ क्षण रुक कर...,
भूत को टटोलने और,
भविष्यत् के गंतव्य को,
कृतकर्म के मंतव्य को,
पुनर्जन्म के माध्यम से,
निर्दिष्ट लक्ष्य संधान का,
पुनीत द्वार है - यह.

मृत्यु; विनाश नहीं, सृजन है.
मृत्यु; अवकाश नहीं, दायित्व है.
मृत्यु; नवजीवन का द्वार है.
मृत्यु; अमरत्व का अवसर है.

मृत्यु; विलाप का नहीं,
समीक्षा का विन्दु है.
जिसके आगे अमरत्व का
लहराता हुआ सिन्धु है.
लक्ष्य का स्वागत द्वार है और,
पारलौकिक जीवन का प्रारम्भ विन्दु है.
मृतु डरने की नहीं, चिंतन की विन्दु है.

सोचो! ...फिर सोचो !!..

पूछना चाहता हूँ उन महानुभाओं से,
समाज के ठेकेदारों से जिन्होंने अपनी
अंतरात्मा की आवाज़ को कुचल कर
जमा कर किया है, अकूत सम्पति.
बनाया है - अट्टालिकाएं और महल.

महल तो बना लिया परन्तु ,
सोचो! .....जिसे कहते है;
'घर एक मंदिर' ..वह कहाँ से लाओगे?
चाँदी के पलंग पर सेज तो बिछा ली,
बोलो प्यारे! - नींद कहाँ से लाओगे?

अलमारी को बना लिया दवाखाना,
बोलो - स्वास्थ्य कहाँ से लाओगे?
घर में पक रहे होंगे छप्पन भोग,
तुम बिस्तर में पड़े पड़े ललचाओगे.

भीड़ चाहे जितनी एकत्र कर लो.
बोलो!- एक मित्र कहाँ से लाओगे?
घड़ियाँ चाहे जितनी खरीद लो,
बोलो! समय को पकड़ पाओगे?
रिंग चाहे जितनी उँगलियों में पहनो,
अर्धांगिनी कहाँ कहाँ से लाओगे?

जब भाई को भाई नहीं मानोगे,
भार्या की बात को भी ठुकराओगे,
घिरे रहोगे चाटुकारों में, निश्चित ही
एक दिन वह भी आएगा जब ......,
कोई हनुमान तुम्हारी लंका को जलाएगा.
तू पड़ा-पड़ा पछतायेगा,रो भी नहीं पायेगा.