Monday, December 20, 2010

तोड़ नहीं पाउँगा उसको..



तोडूंगा तो नहीं मै उसको,
जिसको पूजा था अब तक.
हाँ बहा दिया है संचित सपना,
जिसे सजाया था मै अब तक.

जान गया हूँ तेरी विवशता,
नहीं तुझे मजबूर करूंगा
बोलो चाहती हो क्या मुझसे?
आजीवन तुझसे दूर रहूँगा.

एक थी बस अभिलाषा मेरी,
एक मात्र वह आशा मेरी..,
एक यही अरमान था मेरा,
अग्नि मुझे दे बेटा तेरा...

नहीं तुझे बदनाम करूंगा,
होठों से अब नाम न लूंगा,
दिल की बात नहीं करता मै,
तेरी इच्छा का मै मान रखूंगा,

सच मानो मै 'जाम' न लूँगा..
अश्कों को भी समझाऊंगा
अभिलाषा का 'दान' करूंगा,
नहीं कभी अब आह भरूंगा,
 .
इच्छाओं का अब मोल है क्या?
वेदना है !   कोई ढोल है क्या?
वेदनाओं का 'हार' चढ़ाता हूँ !,
करता हूँ अर्पित तुम्हे अश्रु जल !.

प्राणों का धूप जलाता हूँ मै,
तन का दिया दिखाता हूँ मैं.
मै तेरी 'सुख-धाम' की खातिर,
अपना सर्वस्व लुटाता हूँ मै .
खुद को एक बुत बनाता हूँ मै ...

पर तोड़ नहीं पाउँगा उसको..,
जिसको पूजा था मै अब तक.
बहा दिया सब संचित सपना,
जिसे सजाया था मै अब तक.
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7 comments:

  1. 'तत सुखेन सुखिनः' यह यह प्रेम का चरमोत्कर्ष है ..और मै यह महसूस कर रहा हूँ कि कहीं न कहीं यह रचना उसके समीप तक पहच गयी है. खैर यह समीक्षा का विषय है,.....सच तो यह है कि सोचकर काव्य सृजन नहीं होता..शब्दों को आप थोप नहीं सकते....और प्रेरक को यदि श्रेय न दिया जाय तो यह एक प्रकार कि बेईमानी और छल ही तो कहलायेगा.....यह कृति उस महान रचनाकार और प्रेरक को सादर समर्पित. है...

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  2. किसी के साथ छोड जाने का दर्द शब्दों मे ब्याँ करना सही मे बहुत मुश्किल है। दिल को छू गयी रचना। शुभकामनायें।

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  3. यही प्रेम है……………जहाँ अपनी हर चाहत मिट जाये और उसकी चाहत पर खुद को मिटा दे और उफ़ भी न करे और उसे खबर भी ना होने दे……………भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  4. अति सुन्दर रचना तिवारी जी . गज़ब का सम्प्रेषण शक्ति और भाव होते है आपकी कविताओ में . आभार .

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  5. Many-many thanks to all visitors and participants for their more valuable comments and suggestions.

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  6. मन के भावों को सशक्त शब्द दिए हैं ..अति सुन्दर

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  7. Sangeeta ji!

    Many & many thanks for joining my blog and for your more valuable comments and kind suggestions please.

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