Sunday, August 22, 2010

क्यों है काव्य जीवन में विविधता?


हर गेय रचना काव्य है
और गुंजन इसकी नियति
परन्तु क्यों है काव्य जीवन में
विविधता, क्यों होते हैं
कुछ काव्य - क्षणिक?
कुछ दीर्घजीवी - सुदीर्घजीवी
और कुछ अमर, कालजयी.


जो होते हैं क्षणिक वे हैं - ह्रदय प्रधान
जो हैं दीर्घजीवी वे हैं - भाव प्रधान
जो हैं सुदीर्घजीवी वे हैं - बोध प्रधान
परन्तु जो होते हैं - अमर, कालजयी
घुले होते हैं उसमे स्नेह - माधुरी
और वात्सल्य अपने स्वाभाविक रूप से.


स्नेह की उसी सरसता, सरलता, सहजता
और स्निग्धता के कारण ही है उसमे -
गति, ऊर्जा, व्यापकता और संजीवनी.
जैसे - 'माँ' का निःस्वार्थ , आसीन प्यार,
दुलार, वात्सल्य जब उठकर अन्तः से,
होठों से निस्सृत होता है -


लोरी विधा में; कुछ इस रूप में.
"ओ... चं.दा... मा...मा.. आ...रे...
आ...व पा....रे.. आ...व नदिया.....
किना...रे.. आ...व चाँ...दी ..के
कटोरवा.... में.. दू...ध- भा....त
ले..ले.. आ....व...बबु... के ..मुह ..में .."
कितना निःस्वार्थ आत्मिक स्नेहमयी
और वात्सल्यमयी है यह- 'गीत'.


कोई नहीं जानता किस माँ के अन्तः से फूटा
होगा प्रथम बार यह छंद, लेकिन गूँज रहा है
अनादिकाल से और गुंजित रहेगा अनंतकाल तक.
जब तक श्रृष्टि रहेगी, जब तक माँ रहेगी...,
उसकी ममता और उसका वात्सल्य रहेगा...


नहीं सुना है अब तक ऐसा कोई गीत
जो किसी पुत्र - पुत्री ने गाया हो और
जो सदियों से अब तक बहा हो -'
निर्बाध'. किसी माँ के लिए.


हाँ साहित्य में जरूर पढ़ा है -
"जननी जन्म भूमिश्च ...." और
"वन्दे मातरम्" जैसे गीत, इसके अनुवाद;
परन्तु कहाँ बही है इसकी अनवरत धारा?
जननी और जन्मभूमि को कई-कई बार
किया है कलंकित उसके अपने ही खून ने.


"वन्दे मातरम्" को कुछ सपूतों ने गाया
विधिवत गाया है परन्तु अधिकतर ने इसे
सत्ता प्राप्ति का साधन ही बनाया है.
ऊर्जस्वी और तेजस्वी होते भी 'साध्य' नहीं
बन पाया है अतएव यह अमर काव्य नहीं
सन्देश है, दीर्घ जीवी तो है परन्तु मानने
न मानने की स्वतंत्रता है अथवा यूँ कह लीजिये
यह निजता या अपनी क्षुद्रता है.
आज भी कितनो को कंठस्त है यह गीत?


माँ के गीत में बाध्यता नहीं है,
यह प्रत्येक माँ की उच्छ्वास है
यह ममत्व का स्वाभाविक उदगार,
ह्रदय की पुकार है. यह सृजित नहीं;
निःसृत है इसलिए अमर काव्य की धार है


कुछ ऐसे ही हैं और भी गीत जैसे-
विदाई के क्षण हर पिता की आँख से
बहनेवाला निःशब्द गीत..
विरही और विरहनी के मौन 'विरह गीत'.
जब भी किसी ने इस मौन को ढाला है
शब्दों में, ये गीत बन गए हैं अनायास ही
दीर्घजीवी और सुदीर्घजीवी.
.

4 comments:

  1. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।

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  2. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

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  4. Vabdana ji & Sangeeta ji

    Thanks for comments.

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