Monday, March 1, 2010

समय बदल चुका है

हाँ भाई ! समय बदल चुका है,
बदलाव की इस आंधी में;
बह चले हैं- हमारे पुरातन संस्कार,
पुरानी संस्कृति - सभ्यता और विचार,
टूट रहें है, हमें पालने वाले संयुक्त परिवार.

किसी को बहुत गहराई तक मत कुरेदो;
याद रखो इस बहुमूल्य कथन को -
हर देदीप्यमान वस्तु नहीं होता - कंचन.
हर पुरानी वस्तु अनुपयोगी नहीं होती;
उसी तरह हर नई वस्तु उतनी उपयोगी भी नहीं
जितनी दिखती है, अवाश्य्काका विवेक की है,
परन्तु कौन समझ रहा? सब भाग रहे है-अंधाधुंध.

आज इंसान और प्याज में जो गहरा नाता है,
वह भोले -भाले इंसान को देर में समझ आता है,
इंसान अपनी शक्ति, शांतिमय जीवन विताने,
अपनी पसंद की सरकार बनाने में लगाता है.
पारिवारिक-सामाजिक दायित्वों को निभाता है,
यह दाल चाहे जितनी महँगी हो जाये,
उसमे कहाँ इतना दम ? यह तो प्याज ही है;
जो चुनी हुयी सरकार को अर्श से फर्श पर गिराती है.

खुशहाल घरौंदा, मजबूत रिश्ते, अटूट बंधन;
जब जातें हैं दरक, बाजी जब हाथ से जाती है सरक.
तब जाकर कहीं होश ठिकाने आता है.
पड़ताल करके भी करोगे क्या अब ?
था जिस पर बहुत भरोसा मुझे;
उसी का नाम बार- बार आता है.

इसीलिए फिर कहता हूँ - मत कूदो;
किसी के अंतरतम में बहुत दूर,
अतल वितल सुदूर गहराइयों तक.
मत निहारो किसी को एक टक,
धरती से अनंत आसमान टक.
मत मानो उसे इंसान से भगवान् तक.

क्योकि जब उतरती जायेगी,
उसके लबादे की एक - एक परत,
हर परत देगी बार - बार एक टीस;
नेत्रों में भर आयेंगे ढेर सारे अश्रु,
समझ नहीं पाओगे, यह मित्र है या शत्रु ?
पत्नी है, भाई है, पुत्री है या फिर ......पुत्र.?

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